Modi के मास्टरस्ट्रोक से विपक्ष चारों खाने चित, जानें कैसे सेट किया बिहार तक का नैरेटिव?
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा सियासी कदम उठाते हुए अगली जनगणना के साथ जाति जनगणना कराने का फैसला लिया है।
- Rishabh Chhabra
- 30 Apr, 2025
2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ा सियासी कदम उठाते हुए अगली जनगणना के साथ जाति जनगणना कराने का फैसला लिया है। यह फैसला उस वक्त आया है जब विपक्षी INDIA गठबंधन लगातार जातिगत आंकड़ों की मांग कर रहा था। राहुल गांधी, तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव जैसे नेताओं ने "जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी" के नारे के जरिए जाति आधारित गणना को केंद्र में लाने की कोशिश की, लेकिन अब केंद्र सरकार द्वारा इस फैसले ने विपक्ष के इस प्रमुख मुद्दे को कमजोर करने की दिशा में बड़ी चाल चली है।
प्रधानमंत्री मोदी की यह घोषणा न केवल राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह रणनीतिक रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भाजपा के लिए सियासी जमीन तैयार करने का औजार भी बन सकती है। बिहार की बात करें तो वहां पहले ही जातीय जनगणना हो चुकी है और उसके आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि राज्य में पिछड़ी जातियों की आबादी करीब 63% है। ऐसे में भाजपा अब इस सामाजिक समीकरण को अपने पक्ष में भुनाने की कोशिश कर सकती है।
गौरतलब है कि जब बिहार में महागठबंधन की सरकार ने जाति सर्वे कराया था, तब भाजपा ने विपक्ष में रहते हुए भी उसका समर्थन किया था। इस सर्वे के आधार पर राज्य सरकार ने आरक्षण लागू करने की कोशिश की थी, हालांकि कोर्ट के हस्तक्षेप से उस पर रोक लग गई। अब केंद्र सरकार के कदम से संकेत मिलते हैं कि भाजपा इस नीति को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की सोच रखती है।
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल जाति जनगणना को सामाजिक न्याय का आधार मानते रहे हैं। राहुल गांधी ने इसे 'ओबीसी अधिकारों की पहचान' से जोड़ा, जबकि समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) समीकरण के जरिए जन समर्थन जुटाने की कोशिश की। लेकिन अब पीएम मोदी ने इस मुद्दे पर खुद नेतृत्व करते हुए विपक्ष की सियासी जमीन खिसकाने की कोशिश की है।
इस फैसले से भाजपा को ना केवल जातिगत वोटों में सेंध लगाने का अवसर मिलेगा, बल्कि विपक्षी पार्टियों के "संविधान बचाओ" और "आंबेडकर बचाओ" जैसे नारों को भी जवाब देने का हथियार मिलेगा। खासतौर पर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य, जहां 2027 में चुनाव होना है, वहां ये मुद्दा बेहद प्रभावशाली हो सकता है।
भाजपा ने इस ऐलान के साथ कांग्रेस पर भी हमला बोला है। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जाति जनगणना पर विचार का आश्वासन दिया था, लेकिन उसे कभी लागू नहीं किया गया। 2011 की जनगणना में सामाजिक-आर्थिक सर्वे हुआ जरूर, लेकिन उसकी रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं की गई। अब केंद्र सरकार संविधान के अनुच्छेद 246 के अंतर्गत यह पहल कर रही है।
इस फैसले से यह भी साफ है कि भाजपा अब सामाजिक न्याय के मुद्दे पर भी अपनी सियासी पकड़ मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ रही है। विपक्ष इस कदम को अपनी जीत बता सकता है, लेकिन राजनीतिक तौर पर यह मोदी सरकार का ऐसा दांव है जिससे विपक्ष की रणनीति असंतुलित होती दिख रही है।
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