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आप नेता और पूर्व मंत्री सौरभ भारद्वाज के 13 ठिकानों पर ED का छापा, जानिए क्यों हो रही कार्रवाई?

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अस्पताल निर्माण घोटाले से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग जांच में प्रवर्तन निदेशालय की बड़ी कार्रवाई
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New Delhi: दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेता और पूर्व मंत्री सौरभ भारद्वाज के घर समेत 13 ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय ने सोमवार को छापेमारी की। यह कार्रवाई अस्पताल निर्माण में हुए कथित घोटाले और मनी लांड्रिंग की जांच के सिलसिले में की गई है। छापेमारी के दौरान ईडी ने दस्तावेज और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य जुटाए हैं। ईडी की इस कार्रवाई पर आम आदमी पार्टी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि यह छापेमारी महज ध्यान भटकाने की रणनीति है। सौरभ भारद्वाज के खिलाफ दर्ज किया गया मामला झूठा है जिस समय की बात की जा रही है, उस समय वह मंत्री भी नहीं थे। वहीं, सांसद संजय सिंह ने कहा कि मोदी सरकार झूठे मामले दर्ज कर एक-एक करके आप नेताओं को जेल भेज रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फर्जी डिग्री के मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए ईडी का इस्तेमाल किया जा रहा है।


क्या है मामला

24 जून 2025 को उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना ने अस्पताल निर्माण घोटाले की जांच को मंजूरी दी थी। इसके बाद 22 अगस्त को भाजपा नेता विजेंद्र गुप्ता ने शिकायत दर्ज कराई थी उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन और सौरभ भारद्वाज पर मिलीभगत कर स्वास्थ्य विभाग में भ्रष्टाचार करने का आरोप लगाया गया था। आरोप है कि 2018-19 में 5590 करोड़ रुपये की लागत से 24 अस्पताल परियोजनाओं को मंजूरी दी गई थी जिनमें 11 ग्रीनफील्ड और 13 ब्राउनफील्ड शामिल थीं। इनमें बड़े पैमाने पर हेराफेरी की गई है।


निर्माण में देरी से बढ़ी लागत

आरोप है कि 6800 बिस्तरों की क्षमता वाले सात आईसीयू अस्पतालों के निर्माण के लिए सितंबर 2021 में छह महीने की अवधि में 1125 करोड़ रुपये की लागत से मंजूरी दी गई थी लेकिन तीन साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी केवल आधा काम ही पूरा हुआ और लागत 800 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। लोकनायक अस्पताल न्यू ब्लॉक की लागत 465.52 करोड़ रुपये तय की गई थी, लेकिन चार साल में इस पर 1125 करोड़ रुपये खर्च हो गए। इसी तरह 94 पॉलीक्लिनिक्स बनाने की योजना 168.52 करोड़ रुपये की थी, मगर 52 का निर्माण करने पर ही 220 करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए। स्वास्थ्य सूचना प्रबंधन प्रणाली को लागू करने में भी एक दशक से अधिक की देरी हुई और वित्तीय लेन-देन में पारदर्शिता की कमी सामने आई।

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