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नोएडा में प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास नाकाम, 5 साल से हवा रेड ज़ोन में-बजट खर्च, लेकिन सुधार नहीं

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नोएडा में प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास नाकाम। 5 साल से हवा रेड ज़ोन में। करोड़ों खर्च के बावजूद AQI में सुधार नहीं, जुर्माने की वसूली सिर्फ 3%।
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नोएडा। दिल्ली-NCR की हवा लगातार जानलेवा होती जा रही है। अभियान, नियम और करोड़ों रुपये का बजट—सबके बावजूद नोएडा की एयर क्वालिटी पिछले पांच वर्षों में बेहतर नहीं हो सकी। शहर हर सर्दियों में GRAP लागू होने के बावजूद ‘Red Zone’ से बाहर नहीं निकला। मंगलवार को राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण दिवस है, लेकिन आंकड़े बताते हैं कि प्रदूषण नियंत्रण अब भी प्रशासन, प्राधिकरण और प्रदूषण बोर्ड के लिए सबसे बड़ी चुनौती बना हुआ है।

 पांच साल से लगातार खतरनाक हवा

अक्टूबर से लेकर फरवरी तक शहर की हवा गंभीर श्रेणी में बनी रहती है। GRAP के तहत लागू प्रतिबंध, एंटी-स्मॉग गन, वॉटर स्प्रिंकलर और चालानों के बावजूद हवा की गुणवत्ता में स्थायी सुधार नहीं दिखाई दिया।

स्वच्छ वायु सर्वेक्षण में भी फेल

2025 के Swachh Vayu Survey में नोएडा: 3–10 लाख आबादी वाले शहरों में सिर्फ 9वीं रैंक पर रहा। यह रैंक पिछले वर्ष से भी खराब है।

बजट मिला 55 करोड़, खर्च हुए सिर्फ 7 करोड़

राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) के तहत तीन वर्ष में:

मद                                राशि
स्वीकृत बजट           ₹55 करोड़
अब तक खर्च          सिर्फ ₹7 करोड़

इस दौरान न तो शहर-स्तर पर जागरूकता अभियान चले और न ही उद्योगों में क्लीन-फ्यूल ट्रांज़िशन की उल्लेखनीय प्रगति दर्ज हुई।

जुर्माना कार्रवाई सिर्फ औपचारिकता

2017 से 2025 तक कुल 28 करोड़ 24 हजार 375 रुपये का चालान लगाया गया, लेकिन वसूली सिर्फ ₹1 करोड़ के करीब, यानी केवल 3%। नवंबर और दिसंबर लगातार सबसे प्रदूषित महीनों में शामिल रहे।

क्यों नहीं सुधरी हवा? विशेषज्ञों के अनुसार 3 बड़ी वजहें:
कारण                                               प्रभाव
निर्माण धूल और सड़क की मिट्टी           AQI में बड़ा योगदान
वाहन प्रदूषण में वृद्धि                           EV ट्रांज़िशन धीमा
कूड़ा जलाना और मॉनिटरिंग की कमी   GRAP लागू होने के बावजूद धुआं


आंकड़े बताते हैं कि नोएडा में प्रदूषण नियंत्रण की योजना कागज़ों पर अधिक और ज़मीन पर कम दिखती है। पांच साल में न तो हवा बेहतर हुई और न ही चालान व्यवस्था प्रभावी रही। अब सवाल यह है कि क्या नीति में बदलाव होगा या आने वाली सर्दियों में भी शहर वही जहरीली हवा में सांस लेगा?

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