धनतेरस पर कैसे करें विधि-विधान से पूजन और मुहूर्त , जानिए क्यों खास है यह शुभ दिन?

- Nownoida editor1
- 18 Oct, 2025
धनतेरस, दीपावली महोत्सव की शुरुआत का पहला दिन माना जाता है। यह दिन धन, आरोग्य और समृद्धि का प्रतीक है। इस दिन माता लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और कुबेर देव की आराधना का विशेष महत्व होता है। इस वर्ष धनतेरस 29 अक्टूबर 2025 (बुधवार) को मनाई जाएगी। आइए जानते हैं धनतेरस से जुड़ी पूजन विधि, मंत्र, कथा और धार्मिक मान्यताएं।
धनतेरस का महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार, धनतेरस कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन को धन्वंतरि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।
धनतेरस के दिन सोना, चांदी, बर्तन या किसी धातु की वस्तु खरीदना शुभ माना जाता है, क्योंकि यह घर में समृद्धि और सौभाग्य का आगमन का संकेत देता है।
धनतेरस पूजन विधि
शुभ मुहूर्त: धनतेरस पूजा प्रदोष काल में की जाती है, जो सूर्यास्त के बाद लगभग 5:30 से 8:00 बजे के बीच होता है।
व्रत और स्नान: सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और घर की साफ-सफाई करें। मुख्य द्वार पर रंगोली और दीप सजाएं।
कुबेर व लक्ष्मी पूजन: शाम को ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में लाल या पीले वस्त्र बिछाकर मां लक्ष्मी, भगवान कुबेर और धन्वंतरि की प्रतिमा स्थापित करें।
दीपदान: घर के द्वार, तुलसी चौरा, रसोई और तिजोरी के पास दीपक जलाएं। दक्षिण दिशा में यमराज के नाम से एक दीप जलाना विशेष शुभ माना जाता है।
भोग अर्पण: पूजन के बाद खीर, मालपुआ या मिश्री का भोग लगाएं और परिवार सहित आरती करें।
धनतेरस पर पहला शुभ मुहूर्त- सुबह 8:50 से सुबह 10: 33 तक रहेगा।
दूसरा मुहूर्त - सुबह 11: 43 मिनट से दोपहर 12: 28 तक रहने वाला है।
तीसरा मुहूर्त- शाम 7 : 16 मिनट से रात 8: 20 मिनट तक मान्य है।
धनतेरस पूजन मंत्र
मां लक्ष्मी मंत्र:
“ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः॥”
कुबेर देव मंत्र:
“ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये नमः॥”
भगवान धन्वंतरि मंत्र:
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वंतरये अमृतकलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय नमः॥”
इन मंत्रों के जप से धन, स्वास्थ्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
धनतेरस की कथा
एक प्राचीन कथा के अनुसार, राजा हिमराज के पुत्र की जन्म कुंडली में अल्पायु का योग था—कहा गया था कि विवाह के चौथे दिन उसकी मृत्यु सर्पदंश से हो जाएगी। राजा ने ज्योतिषियों की सलाह पर विवाह के दिन के बाद राजकुमारी ने घर के दरवाजे पर सोने-चांदी के आभूषणों और दीपों का ढेर लगा दिया। जब यमराज सर्प का रूप धारण कर आए, तो उनके नेत्र दीपों की रोशनी और आभूषणों की चमक से चकाचौंध हो गए। वह अंदर न जा सके और लौट गए। तभी से धनतेरस की रात “दीपदान” की परंपरा शुरू हुई, ताकि यमराज प्रसन्न होकर आयु और सुख प्रदान करें।
धार्मिक मान्यताएं और परंपराएं
धनतेरस के दिन धातु की वस्तु, बर्तन या सोना-चांदी खरीदना शुभ होता है। इस दिन घर की सफाई और दीप सजावट करने से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है।
यमदीप दान (दक्षिण दिशा में दीप जलाना) दीर्घायु और सुरक्षा का प्रतीक है। भगवान धन्वंतरि की पूजा से स्वास्थ्य और रोगमुक्ति की कामना की जाती है।
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